Thursday, December 10, 2015

भिक्षुक

    
निराला--- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 1896 में वसंत पंचमी के दिन हुआ था। आपके जन्म की तिथि को लेकर अनेक मत प्रचलित हैं।  निराला जी के कहानी संग्रह ‘लिली’ में उनकी  जन्मतिथि 21 फरवरी 1899 प्रकाशित है। 'निराला' अपना जन्म-दिवस वसंत पंचमी को ही मानते थे। आपके पिता पंडित रामसहाय तिवारी उन्नाव के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। ‘निराला’ जी की औपचारिक शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। तदुपरांत हिन्दी, संस्कृत तथा बांग्ला का अध्ययन आपने स्वयं किया। तीन वर्ष की बालावस्था में माँ की ममता छीन गई व युवा अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते पिताजी भी साथ छोड़ गए।  प्रथम विश्वयुध्द के बाद फैली महामारी में आपने अपनी पत्नी मनोहरा देवी, चाचा, भाई तथा भाभी को गँवा दिया। विषम परिस्थितियों में भी आपने जीवन से समझौता न करते हुए अपने तरीक़े से ही जीवन जीना बेहतर समझा।
इलाहाबाद से आपका विशेष अनुराग लम्बे समय तक बना रहा। इसी शहर के दारागंज मुहल्ले में अपने एक मित्र, 'रायसाहब' के घर के पीछे बने एक कमरे में 15 अक्टूबर 1971 को आपने अपने प्राण त्याग इस संसार से विदा ली।   निराला ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का हिन्दी में अनुवाद भी किया। 'निराला' सचमुच निराले व्यक्तित्व के स्वामी थे। निराला का हिंदी साहित्य में विशेष स्थान है।                   




                          भिक्षुक
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वह आता
दो टुक कलेज़े के करता पछताता
पथ पर आता
पेट-पीठ दोनों मिलकर है एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को भूख
 मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता
दो टूक कलेजे के करता 

पछताता पथ पर आता 
साथ दो बच्चे भी है सदा 
हाथ फैलाये,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते
और दाहिना दया दृष्टि- पाने की ओर बढ़ाये

भूख से सुख ओठ जब जाते
दाता- भाग्य विधाता से क्या पाते
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी 
सडकों पर खड़े हुए
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी है
अड़े हुए-

सूर्यकान्त त्रिपाठी  "निराला"

आभार-
http://www.bharatdarshan.co.nz/author-profile/17/nirala-biography.html

https://ndubey.wordpress.com/2010/06/06/%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%81%E0%A4%95-bhikshuk-by-nirala/

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